Tuesday, November 19, 2013

यादें

मेरी महफिलें, मेरी खुशियां
किसी की मौजूदगी कि मौहताज नहीं। 
मेरी तन्हाई, किसी की बददुआ का असर नहीं
अंजाम है ये उसकी कमज़ोरी और बुज़दिली का। 

उन्होंने सोचा कि मिट जाएगा हमारा वजूद उनके बिना 
पर हम ज़िन्दगी में खुद को उठाते ही चले गए। 
हर वो चीज़, जो था उनका वादा 
वही मोहब्बत हम खुद को तोहफे में देते चले गए। 

नोच के उखाड़ फेंका मेरे सर से ताज उन्होंने 
पर हमने तब भी उन्हें अपना सरताज माना। 
पर उन्होंने ना समझा ज़रूरी उस घाव को भरना 
थे सिर्फ जिसके इंतज़ार में हम, वो प्यार का मरहम कभी हमारे दामन में ना आया। 

लिए बैठे थे वो भी अपने ज़ख्म 
इस उम्मीद में कि भर देंगे उन दरारों को हम 
पर नज़र ना आयी उन्हें खुद कि खींची वो लकीर, जिसे पार करने की ताकत भी उन्होंने हमसे छीन ली। 
छीन लिए हमसे हमारे हक़, और हमें ही बेदर्द करार कर दिया 
फिर एक बार छोड़ दिया बीच राह में हमें 
और बेवफा का दर्ज भी हमें ही दे दिया। 

लिए बैठे रहे हम भी वही खुले घाव 
कि कभी तो वो आएंगे याद करके वो गुज़रे फ़साने। 
पर ना वो आये, ना आयी उनकी रहमत 
और हमें हमेशा के लिए इस गफलत में छोड़ दिया 
कि क्या वो कसूर इतना संगीन था, कि उन्होंने हमारा दामन छोड़ना बेहतर समझा। 
बेहतर समझा हमेशा के लिए हमसे मुँह मोड़ना, क्या वो ख्वाहिश इतनी नागवार थी। 

भूल गए वो हमारी फितरत 
वो टूट के प्यार करने का जज़बा। 
उनकी लत में इस कदर डूबे 
कि हर जज़्बात उनके बिना अधूरा था।
किसी और के लिए छोड़ा होता तो इतनी चुभन नहीं होती,
पर उन्होंने तो हमें हमारे लिए ही छोड़ दिया या कहें कि हमारी वजह से छोड़ दिया

जब जब बीच राह में वो छोड़ गए 
वहीं खड़े इंतज़ार किया कि कभी तो मुड़कर देखेंगे 
कभी तो आयेगी उनकी आवाज़ पीछे से 
कभी तो पलट के वापस आएंगे हमारे पास दौड़ के। 
आज भी सोचते हैं कि काश एक बार तो पलट के देखा होता उन्होंने 
थक कर हर बार खुद ही राह ढून्ढ ली 
और बेसुध अकेले ही चल दिए टूटे अरमानो के साथ। 

बहुत कहा उनसे छोड़ जाने को हमें 
उन्होंने किया वादा कि कभी ना छोड़ेंगे 
जब थी उनकी ज़रूरत, जब नहीं चाहा कि वो जाए 
तब सब कुचल के वो निकल गया अपनी अलग राह पर 

उनका दामन छूटा तो हमने लड़ना सीखा 
सीखा उन सभी तूफ़ानो से जूझना, जिनके आने पे हम उनके पीछे छिप जाते थे।
लड़ते थे उनकी हर मुश्किल से, पर अपनी तकलीफों से घबरा जाते थे। 

आज भी वो पल याद करके सिहर उठते हैं 
जब रौंद दिया था हमारे सभी ख्वाबों को। 
ज़हर जैसे शब्दों से जला दिया सभी उम्मीदों को। 
जब हर पल हमारे साथ साथ कोसा हमारे माँ-बाप को भी 
जब हमें पैदा करने वाले ही एक गाली बन गए उनके लिए। 

काश ये समय वापस पलट पाता, काश हम सब कुछ ठीक कर पाते 
काश उन्हें अपनी बात समझा पाते, काश उनकी खुशबू में खो पाते। 
ये काश एक ऐसा लफ्ज़ है जो सबसे ज़यादा दर्द दे जाता है 
और हाथ हमेशा खाली रह जाता है। 

होता वही है जो ऊपरवाले ने सोच रखा है 
हम तो बस ज़िन्दगी में आगे बड़ सकते हैं उन यादों को सँवारे।

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